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कुछ सुलझा कुछ उलझा शहर मेरा
दुख लिए, तकलिफ लपेटे
रेशम के धांगो से देवियों की
लाज बुनता है शहर मेरा।
मदमस्त मस्ती की मुस्कान लिए,
गिरता सम्हलता शहर मेरा।
साप सीढी वाली गलिया,
जलेबी सी सीधी मेरे शहर की गलिया
मा गंगा के दर पे ले
जाती दर्शन कराती
मेरी हमसफर गलिया ।
मेरे शहर की धङकन है
मेरे शहर की गलिया ।
गलियों का रेला बना शहर मेरा
कुछ सुलझा कुछ उलझा शहर मेरा।
गंगा के घाटों में मदिर के घंटो में
पान की पिचकारी में हाथों की मेहंदी में
बोली मे भाषा में धर्म में ज्ञान में
प्यार मे मुस्कान में गालियों की मिठास में
मेरा शहर उलझा रहता है ।
शंकर कि नगरी ये मंदिर का संसार यहां
मुक्ति यहां शक्ति यहां
बाबा की जयकार यहां
फिजाओं में घुलती महकती
अजानों की गुलजार यहां।
राम रहीम का प्यार यहां
ठमुरी यहां दादरी यहां
साहित्य की रीत यहां
गुरु शिष्य की प्रीत यहां
सारे रिश्तों का साथ यहां
किस्सा यहां कहानि यहां
तेरे मेरे जस्बात यहां
याद आये तो चले आना
मेरे शहर में भगवान बसता है।
मेरे दिल मे मेरा शहर बसता है
जीवन के सारे रसों से
बना मेरा बम बम बनारस
मेरा काशी मेरा वाराणसी
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