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कुछ तो भूल आया हू या सब कुछ भूल आय़ा हू

smrit
smrit
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दौलत शौहरत की चाहत में अपना देश भूल आया हू
अपना घर , मोह्ला, हर गली भूल आया हू
अपना जिगरी यार भूल आया हू
शायद उन मुलाकातों की जगह भूल आय़ा हू
दोस्तों कि दिलदारी का शमा भूल आया हू
आफिस के काम में मां को कॉल करना भूल आया हू
गिफ्टस प्रमोशन और बोनस की राह में
होली दिवाली में घर भी जाना है, ये भूल आया हू
घर नया है ,गाड़ी भी ली है ,मरने से पहले एक पोलिसी भी ली है
लेकिन इन सब के बीच खुद को कहीं भूल आया हू
किसलिए जी रहा हू खुद के लिए ,या जिसे भूल कर आया हू
हर एक बात ,हर एक अहसास भूल आया हू ।
दौलत शौहरत की चाहत में अपना देश भूल आया हू।

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