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भाई मान लो हम किसी इंटरनेट साइड या एप्स को इस्तमाल करने के लिए एक 1 पैसा /10 kb देते है, तो उतने ही पैसें हर साइड और एप्स के लिए भी देगे ना? नेटन्यूट्रेलिटी या इंटरनेट तटस्थता इस शब्द के मायने कुछ भी हो पर ये जानना जरुरी है कि ये शब्द एक ऐसे अधिकार की मांग कर रहा है जो हम सभी का हक है और वो है समानता का अधिकार….
सन् 2000 के बाद देश में संचार क्रांति बहुत तेजी विकसित हुई.
देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा मोबाईल फोन से लैस हो गया.
मात्र 10 सालों के अंदर देश में फोन सिर्फ बाते करने के लिए ही नहीं बल्कि एक मल्टीटास्क डिवाईस में तब्दील हो गया।
सिर्फ एक फोन से हम गानें फोटो विडियों और दूनिया भर की तमाम जानकारी को सर्च शेयर और स्टोर करने लेगे ।
दिन बदले और देश की टेलिनेट सेवा प्रदाता कंपनीयों ने आगे बढ़ते हुए 3जी और4 जी सेवा शुरु की, जिससे डेटा की अपलोडिंग और डाउनलोडिंग बहुत आसान और तेजी से होने लगी।
लगभक उसी समय सस्ते एंड्रायड फोन की बाढ़ सी आ गयी , सबके पास नये और पहले से भी तेज आपरेटिंग सिस्टम वाले फोन आ गये ।
फीर आए ऐसे ऐप्स जिसकी मदद से आप इटरनेशनल कॉल ,मैसज और विडियों चैट आसानी से करने लगे वो भी बहुत कम कीमत पर ।
संचार के इस बदलाव ने सैलुलर कपनीयों की मैसज सेवा का लगभक अंत कर दिया तो वहीं उनकी कॉलिग सेवा में भी सेध लगाई ।
अब पलटवार करने की बारी सेलुलर कंपनीयों की है। टेलीनेट कंपनीया ऐसे ऐप्स पे कि जाने वाले डाटा शेयरिंग की स्पीड कम कर सकते है। मसलन अब ये एप्स ओपन ही ना होतो लोग बातें और मैसज कैसें करेगे । इसके अलावा सैलुलर प्रदाता कंपनीया ऐसे एप्स और साईटस को ऐक्सस करने पर हमारे डेटा बैलंस से ज्यादा kb (किलोबाईट) काट सकते है ।
खाना कपड़ा और मकान के बाद सैलुलर और नेट सुविधा अब हमारी मूलभूत जरुरतें है। ये अब जरुरत भी है और आदत भी है। सैलुलर कंपनीया एक जैसें चार्ज हर एप्स और साईड के लिए हमसे वसूल करे ,नहीं तो खुद अपनी कंपनी के ऐप्स और साईड बनाये जो हमे वाइस कालिंग नेट मैसजिंग/ चैटिंग के नये और सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध कराए वो भी किफायती कीमत पर। ऐसें में सेलेलुर कपनीयों का मुनाफा भी उनकी ही जेब तक आएगा और उपभोक्ता को भी राहत होगी । ट्राई ने स्काइप, वाइबर व्हाट्सएप ,स्नैपचैट , फेसबुक जैसी सेवाओं से जुंड़े 20 सवालों पर जनता की राय मांगी है ।मैने दिए है आप भी दिजिए………………
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