smrit
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उनका दिल ही मेरा आशियाना था । मुझे महलों की जरुरत ना थी।
हसी खुशी में चले जिंदगी नाराजगी में जलने की जरुरत ना थी।
प्यार में जुबा की जरुरत ना थी, हमे लफ्जों और अल्फाजों की जरुरत ना थी।
नजर नजर से दिलों की बात हुई थी हमे लफ्जों और अल्फाजों की जरुरत ना थी।
प्यार भी उनसे तो तकरार भी उनसे ही थी,मेरे शपनों मेरी चाहतों की पहचान उनसे ही थी।
वो मुझे और हम उन्हें समझ बैठे अब कहने सुनने की जरुरत ना थी।
अहसास और जज्बात समझे बैठे है ,हमे लफ्जों और अल्फाजों की जरुरत ना थी।
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